परती भूमि विकास विभाग

समेकित वाटरशेड प्रबन्धन कार्यक्रम(आईडब्ल्यूएमपी)

o   समेकित वाटरशेड प्रबन्धन कार्यक्रम कृषि नीति 2013 से भी आच्छादित है। वित्तीय वर्ष 2009-10 से संचालित इस कार्यक्रम का वित्त-पोषण भारत सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा 90:10 के अनुपात में किया जाता है।

o   इस योजना का क्रियान्वयन वर्षा सिंचित क्षेत्रों में किया जा रहा है, जहां पर गरीबी, जल की कमी, भूजल स्तर में तेजी से गिरावट, वायु तथा जल के द्वारा मृदा का क्षरण, भूमि का अवक्रमण, वर्षा जल के उपयोग की कम क्षमता, चारे की अत्यधिक कमी, पशुधन से अत्यन्त कम उत्पादन, जल उपयोग की क्षमता में कम निवेश तथा कमजोर परिस्थितिकीय प्रणालीयों की भयावहता आदि विद्यमान है।

o   प्रदेश के चार जनपदों (गाजियाबाद, गौतमबुद्धनगर, कासगंज एवं शामली) को छोड़कर शेष 71 जनपदों में यह योजना क्रियान्वित की जा रही है। वर्ष 2009-10 से 2013-14 तक 26.50 लाख हे0 क्षेत्र के विकास हेतु 538 परियोजनायें स्वीकृत हुई हैं, जिनकी अनुमानित लागत रू0 3186.42 करोड़ है।

o   परियोजना के क्रियान्वयन हेतु भारत सरकार की गाइड लाइन्स की व्यवस्था के अनुसार कृषि उत्पादन आयुक्त की अध्यक्षता में राज्य स्तरीय नोडल एजेंसी (एसएलएनए) का गठन किया गया है।

o   शारदा सहायक समादेश, रामगंगा समादेश एवं कृषि विभाग की भूमि संरक्षण इकाईयों को परियोजना क्रार्यान्वयन एजेंसी नामित किया गया है।

o   स्वीकृत परियोजनाओं को तीन चरणों में 04 से 07 वर्ष की अवधि में पूर्ण करने की निम्नवत् व्यवस्था निर्धारित की गयी हैः-

चरण

नाम

अवधि

1

प्रारम्भिक चरण

1-2 वर्ष

2

वाटरशेड कार्य चरण

2-3 वर्ष

3

समेकन और निवर्तन चरण

1-2 वर्ष

 

o   चरणवार किये जाने वाले मुख्य कार्य निम्नवत् हैः-

 

   प्रारम्भिक चरण

1.       स्थानीय समुदायों की तत्काल आवश्कताओं पर आधारित कार्य जैसे-सार्वजनिक प्राकृतिक संसाधनों को पुनः उपयोग योग्य बनाना, पेयजल की उपलब्धता बढ़ाना, स्थानीय ऊर्जा शक्यता का विकास करना एवं भूजल शक्यता का संवर्द्धन करना आदि।

2.       पूर्व में किये गये सार्वजनिक निवेश तथा पारम्परिक जल ग्रहण संरचनाओं से इष्टतम एवं सतत् लाभ प्राप्त करने हेतु मौजूदा सार्वजनिक      सम्पत्ति, परिसम्पत्तियों तथा संरचनाओं की मरम्मत करना तथा पुनः उपयोग योग्य बनाना।

3.       मौजूदा कृषि प्रणालियों की उत्पादकता का संवर्द्धन करना।

4.       ग्राम स्तरीय संस्थाओं जैसे-वाटरशेड समितियों (डब्ल्यू.सी.), स्वयं सहायता समूहों (एस.एच.जी.) तथा प्रयोक्ता समूहों (यू.जी.) की विकास प्रक्रिया को प्रारम्भ करना तथा संस्थागत और कार्य सम्बन्धी पहलुओं को विभिन्न भागीदारों में क्षमता निर्माण करना।

5.       पर्यावरण निर्माण, जागरूकता सृजन, सघन सूचना एवं शिक्षा और संचार (आई.ई.सी) कार्यकलाप शुरू करना, सहभागिता तथा भागीदारी उत्तरदायित्व सृजित करना।

6.       विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करना, जिसमें किये जाने वाले कार्यों, लाभार्थियों एवं कार्य स्थलों के चयन तथा सभी कार्यों की रूपरेखा और लागत अनुमानों को शामिल किया जाता है तथा महिलाओं, दलितों, आदिवासियों तथा भूमिहीनों के हितों को पर्याप्त रूप से दर्शाया जाना।

                वाटरशेड कार्य चरण

1.       वन एवं सामान्य भूमि में वानस्पतिक आच्छादन को पुनः सृजित करना, अलग-अलग स्थानों पर खाइयां खोदना, समोच्च और क्रमिक पुश्तें लगाना, सतही जल बहाव की प्रबलता गति को कम करके जल ग्रहण क्षेत्र की उर्वरता को बनाये रखना।

2.       मिट्टी से बनने वाली रोक बांधों का निर्माण करना, अवनलिकाओं को बन्द करना, शिलाखण्डों द्वारा रोक लगाना, बेलनकार संरचनाओं का निर्माण करना तथा वानस्पतिक एवं इंजीनियरिंग संरचनाओं के सम्मिश्रण द्वारा जल संग्रहण संरचनाओं का विकास करना।

3.       कम कीमत से निर्मित कृषि तालाबों, नालों पर बांधों, रोक बांधों, रिसने वाले टैंकों और कुओं, बोर-वेल तथा अन्य उपायों के जरिये भूजल की पुनः    भराई हेतु जल संग्रहण संरचनाओं का विकास करना।

4.       चारा, ईंधन, इमारती लकड़ी एवं बागवानी प्रजातियों के लिये नर्सरी तैयार करना।

5.       यथास्थान मृदा एवं नमी संरक्षण हेतु क्षेत्र बांधों, समोच्च और क्रमिक बांधों का निर्माण करना।

6.       नयी फसलों/किस्मों को लोकप्रिय बनाने के लिये फसल प्रदर्शन करना तथा जल बचाव प्रौद्योगिकियों जैसे-ड्रिप सिंचाई, स्प्रिंकुलर सिंचाई अथवा परिवर्तनकारी प्रबन्धन प्रक्रियाओं का प्रचार-प्रसार करना।

7.       चारागाह विकास, रेशम उत्पादन, मधुमक्खी पालन, मुर्गी पालन, पशुपालन तथा लघु उद्यमों को प्रोत्साहित करना।

8.       पशु चिकित्सा सेवाओं और पशुधन सुधार सम्बन्धी उपाय करना।

9.       गांव के तालाबों, खेत तालाबों आदि में मत्स्य पालन का विकास करना।

10.   अपारम्परिक ऊर्जा बचाव उपकरणों, ऊर्जा संरक्षण उपायों एवं बायो ईंधन पौध-रोपण आदि को बढ़ावा देना।

 

   समेकन तथा निवर्तन चरण

1.       विभिन्न कार्यों का समेकन और उन्हें पूरा करना।

2.       परियोजनोत्तर अवधि के दौरान कार्य सूची की नयी मदों को निष्पादित करने हेतु समुदाय आधारित संगठनों  का क्षमता निर्माण करना।

3.       विकसित प्राकृतिक संसाधनों के सतत् प्रबन्धन की व्यवस्था करना।

4.       कृषि उत्पादन प्रणालियों/कृषि से इतर आजीविका साधनों के सम्बन्ध में सफल अनुभवों में और वृद्धि करना।

    समेकित वाटरशेड परियोजनाओं के विकास हेतु रू0 12,000 प्रति हे0 की व्यवस्था निर्धारित है। अनुमन्य लागत का 20 प्रतिशत प्रारम्भिक चरण के कार्यों हेतु, 50 प्रतिशत धनराशि कार्य चरण के कार्यों हेतु तथा 30 प्रतिशत धनराशि समेकन चरण के कार्यों हेतु उपलब्ध करायी जाती है।

समेकित भौतिक एवं वित्तीय प्रगति

(क्षेत्र हे0 में)                                                    (धनराशि करोड़ रू0)

क्रम सं०

कार्यमद

इकाई

डीपीआर के अनुसार नियोजित कार्य

वर्ष 2013-14 तक

पूर्ण कार्य

वर्ष 2014-15 का

लक्ष्य

31.08.2014 तक

की

प्रगति

भौतिक

वित्तीय

भौतिक

वित्तीय

भौतिक

वित्तीय

भौतिक

वित्तीय

1

प्रशासनिक

सं0

278.67

40.43

0

105.49

0

4.22

2

विस्तृत परियोजना

सं0

471

27.87

286

16.90

310

18.76

0

0.67

3

 रिपोर्ट (डीपीआर)

सं0

16319

111.46

13138

93.61

6338

49.08

467

5.32

4

अनुश्रवण

सं0

27.87

1.25

0

11.06

0

0.12

5

मूल्यांकन

सं0

27.87

66

2.49

0

12.78

0

0

6

संस्थागत एवं क्षमता निर्माण

सं0

1922959

139.34

408083

28.68

1241054

91.16

14159

2.97

7

जल संग्रहण विकास कार्य

हे0

2322276

1560.58

329731

2210.58

742858

499.30

35558

27.4

8

आजीविका संवर्द्धन

सं0

126465

250.81

7283

13.33

48061

92.91

1992

7.4

9

उत्पादन प्रणाली एवं सूक्ष्म उद्यम

सं0

278.67

11963

16.19

62762

90.06

2007

4.66

योग

2703.13

434.46

970.60

52.76