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परिचय एवं पृष्ठभूमि: - प्रस्तावना
भारत मे 60 प्रतिशत कृषि योग्य क्षेत्र वर्षा आधारित (रेनफेड) है। इसी प्रकार प्रदेश मे भी लगभग, 50 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा आधारित है। सिंचित क्षेत्रों मे जहां हम हरित क्रान्ति लाने मे सफल हुए है वही वर्षा आधारित क्षेत्रों मे हरित क्रान्ति का सपना साकार होना अभी बाकी है।
वर्षा आधारित क्षेत्रों मे अधिकांषतः दलहन व तिलहन का उत्पादन होता है किन्तु नमी संरक्षण के आभाव में इनकी उत्पादकता बहुत कम है। समेकित जल संग्रहण प्रबन्धन कार्यक्रम के सफल क्रियान्वयन से पर्याप्त नमी संरक्षण व जल संग्रहण से दलहन व तिलहन के क्षेत्र में बढोत्तरी
तथा उत्पादकता में वृद्धि के साथ वर्षा आधारित क्षेत्रों में हरितक्रांति का सपना साकार किया जा सकता है। वर्षा आधारित क्षेत्रों के विकास हेतु जल संग्रहण क्षेत्र के आधार पर प्रदेश मे 1970 के दशक से सूखोन्मुख क्षेत्र विकास कार्यक्रम संचालित किया गया।
1990 के दशक मे समेकित बंजर भूमि विकास तथा राष्ट्रीय जलागम विकास परियोजना का सूत्रपात हुआ और तभी से प्रदेष के वर्षा आधारित क्षेत्रों के विकास के लिए यह दोनों योजनाएं संचालित की जा रही हैं। भारत सरकार द्वारा 2006 में नेशनल रेनफेड एरिया अथारिटी (National Rainfed Area Authority)(NRAA) के
गठन के पश्चात् उक्त योजनाओं को समेकित जल संग्रहण प्रबंधन कार्यक्रम (Integrated Watershed Management Programme)(IWMP) के अन्तर्गत समेकित कर दिया गया।
यह कार्यक्रम ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार के भूमि संसाधन विभाग (Department of Land Resources)की कॉमन गाइड लाइन 2008 के प्राविधानांतर्गत उत्तर प्रदेश के भूमि विकास एवं जल संसाधन विकास विभाग द्वारा संचालित किया जा रहा है।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत वर्षा जल का सग्रहण कर उसे इस प्रकार संरक्षित करना है कि अधिकाधिक वर्षा जल खेतों में गांवों मे तथा जल संग्रहण क्षेत्रों में ही रोका जा सके, साथ ही साथ वर्षा के पानी के साथ कट कर बह जाने वाली मिट्टी तथा भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाया जा सकें और ''खेत का पानी खेत मे। गांव का पानी गांव मे ।। खेत की मिट्टी
खेत मे । गांव की मिट्टी गांव में '' नामक कहावत को वास्तविक रूप से चरितार्थ किया जा सके। इस योजना का उद्देष्य वर्षा आधारित क्षेत्रों में वर्षा जल संग्रहण कार्य यथा मेडबन्दी, सम्मोच रेखीय बांध, अवरोध बांध/ चेक डैम जल भराव बंधी, जल संचय बंधी, तालाबों व अन्य जल संरक्षण संरचनाओं का निर्माण कर अधिकाधिक वर्षा के पानी को बह कर बेकार चले जाने से बचाना है जिससे भूमितल पर वर्षा जल संचयन तथा भूमिगत जल के भण्डारण को
बढावा दिया जा सके। इसके साथ-साथ अकृष्य परती क्षेत्रों के विकास के अंतर्गत वनीकरण, औद्यानीकरण, चारागाह विकास तथा कृषि योय परती क्षेत्रों में मेड़ बन्धी समतलीकरण का कार्य संपादित कर इन्हें विकसित किया जा सकता है। जल संग्रहण विकास कार्य, भूमि संरक्षण इकाइयों में गठित जल संग्रहण विकास दल (डब्लू0डी0टी0) के तकनीकी मार्गदर्षन में जल संग्रहण समितियों (वाटरशेड कमेटी) के माध्यम से
जन सहभागिता सुनिष्चित करते हुए जल संग्रहण क्षेत्र (वाटरशेड) के आधार पर कार्यान्वित किया जाना है। भारत सरकार द्वारा इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत भूमि एवं जल संरक्षण कार्यो के साथ-साथ आजीविकोपार्जन, तथा कृषि उत्पादन प्रणाली एवं सूक्ष्म कुटीर उद्यमों का कार्यक्रम भी समलित किया है जिससे जल संग्रहण क्षेत्र के कास्तकारों के साथ-साथ भूमिहीन/सम्पत्तिहीन, खेतिहर मजदूरों, महिलाओं तथा कामगारों को भी जीवन यापन का बराबर अवसर उपलब्ध हो और
उनकी आर्थिक स्थिति मे आपेक्षित सुधार हो सकें।
आजीविको पार्जन के कार्य, स्वयं सहायता समूहों (Self Help Group) के माध्यम से सम्पादित किये जाने के उद्देष्य से 5 से 20 व्यक्तियों के स्वंय सहायता समूहों का गठन तथा कम से कम 5 स्वंय सहायता समूहो के संगठन (federation) तैयार कर आजीविका संबंधी कार्य संपादित किए जाने हैं।
उत्तर प्रदेश एक बड़ा प्रदेश है। इसकी भिन्न भिन्न भौगोलिक एवं जलवायुविक परिस्थितियों के अनुसार प्राकृतिक संसाधनो, विषेशकर भूमि, जल वनस्पति एवं पशुधन आदि से संबंधित अनेक समस्याएं भी हैं जिनके समाधान के लिए जल संग्रहण क्षेत्र (watershed) के आधार पर आवष्यकता के अनुरूप विभिन्न वाटरशेड विकास कार्यों/उपचारों, आजीविका
साधनों, उत्पादन प्रणालियों, संबंधी कार्य प्रस्तावित किए जाने की भी आवष्यकता है। इसके दृष्टगत प्रदेष को 9 एग्रोक्लाइमेटिक जोन में निम्न प्रकार विभाजित किया गया है।