मृदा प्रबन्धन नीति के मुख्य बिन्दु


    मृदा की दशा सुधारने हेतु ‘‘मृदा स्वास्थ्य सुधार अभियान‘‘ के रूप में संचालन।

    ग्राम्य स्तर पर उर्वरता मानचित्र को विकसित कर इसके आधार पर उर्वरकों की आवश्यकता का मूल्यांकन एवं वितरण।

    गैर कृषि कार्यों में कृषि योग्य भूमि के परिवर्तन को रोकने हेतु दूर संवेदी तकनीक की सहायता से अनुपजाऊ भूमि एवं उपजाऊ भूमि का चिन्हांकन।

    संसाधन संरक्षण तकनीकों को प्रोत्साहित कर आगत कुशलता यथा-उर्वरक एवं सिंचाई को भू-समतलीकरण द्वारा शस्य संरक्षण पद्धतियों में सुधार करना।

    मृदा के भौतिक एवं तत्व प्रास्थिति में सुधार हेतु फसल अवशेष/जैविक पदार्थ, हरी खाद, फसल चक्र, नैडेप एवं वर्मी कम्पोस्टिंग को बढ़ावा देना।

    वातावरण की सुरक्षा एवं मृदा स्वास्थ्य में सुधार हेतु फसल अवशेषों को जलाने पर प्रतिबन्ध लगाना।

    रीपर हारवेस्टर जैसे कृषि यंत्र के प्रयोग को प्रोत्साहित करना।

    सूक्ष्म तत्व प्राथमिक एवं द्वितीय विश्लेषण हेतु मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना एवं सुदृढ़ीकरण।

    राज्य कृषि विश्व विद्यालयों, कृषि विभाग, सहकारी एवं निजी क्षेत्रों के मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं के बीच समन्वय को सुदृढ़ कर धन एवं समय की बचत एवं दोहराव को रोकना।

    भूमि सुधार हेतु जिप्सम, कागज मिलों का अपशिष्ट, प्रेस मड (मैली) इत्यादि कृषकों को वहनीय मूल्य पर उपलब्ध कराना।

    व्यवसायिक केचुआ उत्पादन एवं वर्मी कम्पोस्ट इकाईयों की स्थापना में यथोचित सहायता/अनुदान उपलब्ध कराना।