मृदा प्रबन्धन नीति

    1- मृदा क्षरण कृषि के टिकाऊ उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने में मुख्य बाधा है। इस हेतु मृदा स्वास्थ्य सुधार अभियान को संचालित किये जाने को उच्च प्राथमिकता दी जायेगी।

    2- सुदूर संवेदी तकनीकों की सहायता से उपजाऊ एवं अनुउपजाऊ क्षेत्रों को चिन्हांकित कर उपजाऊ जमीन का संरक्षण करते हुए इसके गैर कृषि उपयोग को रोका जायेगा।

    3- अपरिहार्य स्थिति में गैर कृषि उपयोग हेतु परिवर्तित कृषि योग्य जमीन की दशा में क्षतिपूर्ति के आधार पर उतनी ही कृषि योग्य बेकार भूमि को सुधार कर कृषि उपयोगी बनाया जायेगा।

    4- भू उपयोग प्रारूप का अनुश्रवण दूर संवेदी तकनीकों की सहायता से किया जायेगा एवं होने वाले परिवर्तनों को प्रत्येक पाॅच वर्ष के अन्तराल पर अद्यतन किया जायेगा।

    5- बेकार एवं क्षरित भूमि, जो कि ऊसर, बंजर, बीहड़, परती एवं दियारा रूप में हैं, को उपचारित किया जायेगा और उसका उपयोग कृषि, बागवानी, वनीकरण एवं चरागाह हेतु किया जायेगा।

    6- ऊसर सुधार एवं उसकी प्रबन्ध तकनीक को टिकाऊ और अधिक सस्ती बनाया जायेगा। लवण सहिष्णु प्रजाति की फसलों के प्रयोग द्वारा ऊपरी जल सतह के क्षेत्रों में ऊसर सुधार की लागत को कम किया जायेगा।

    7- भूमि सुधार हेतु जिप्सम, कागज मिलों का पशिष्ट, प्रेस मड (मैली) इत्यादि कृषकों को वहनीय मूल्य पर उपलब्ध कराया जायेगा।

    8- मृदा स्वास्थ्य के सुधार एवं इसे बनाये रखने हेतु जैविक खेती तथा मृदा स्वास्थ्य कार्ड के प्रयोग को बढ़ावा दिया जायेगा।

    9- कृषकों को मृदा परीक्षण की सुविधायें उपलब्ध कराने हेतु निजी उद्यमियों के सहयोग से मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना को राज्य सरकार प्रोत्साहित करेगी। निजी क्षेत्र की मृदा परीक्षण प्रयोगशालाओं को पंूजीनिवेश एवं अनुदान इत्यादि की आर्थिक सहायता देकर उनके संचालन को प्रभावी बनाया जायेगा।

    10-प्रत्येक तीन वर्ष पर मृदा परीक्षण हेतु मृदा नमूना देने एवं कुशल फसल पद्धति तथा फसल पोषण प्रबन्धन हेतु कृषकों को प्रोत्साहित किया जायेगा।

    11- सेसीटाईजेशन कार्यक्रम ।